थोड़ा और दूर लेकिन
उस किनारे पर मुलाक़ात होगी
जहाँ फासले नहीं
सिर्फ क़ुर्बत ही होगी
सफर मुख़्तसर जरूर होगा
मगर यादगार होगा
कुछ कदम दूर
हमारी मौजूदगी होगी
जब हवाएँ चलेंगी
झमाझम बारिश होगी
और तुम्हारे सारे तूफानों को
समेटे ये फ़िज़ा होगी
फिर चाहे ये वक़्त
साथ न दे
किस्मत में मयस्सर होना
ना भी हो
कुछ तुम्हारी कुछ मेरी बदौलत बनाई
ये ज़ंजीरें कभी तो टूटेंगी
बेशक़ चढ़ता सूरज
साथ नहीं देखा
यक़ीनन कभी ढलते हुए
उसके तजुर्बों में तुम जरूर मिलोगे
खुद में मैं तुम्हारी
उल्झनें समाए तभी तो बेदर्द होंगी